Friday, April 11, 2014

निवासी वर्ग हडपसर

निवासी वर्ग हडपसर २९ - ३० मार्च २०१४ 

प्रथम बौद्धिक सत्र 
श्री शिरीष आपटे
विषय - संघ प्रार्थना - भावार्थ 

         संघ कि प्रार्थना कि शुरुवात मराठी में हुई थी, बादमे संपूर्ण भारत वर्ष का विचार सामने रखकर प्रार्थना संकृत भाषा में होनी चाहिए ऐसा जब निर्णय लिया गया तब श्री नरहर नारायण भिडे जी ने आजकी प्रार्थना कि रचना की, और एक सायम संघस्थान में श्री यादवरावजी जोशी, भारतरत्न भीमसेनजी जोशी इनके गुरुबंधु, इन्होने गायन किया।
अपनी संस्कृति में पुराणोंसे हम कोई भी प्रार्थना कि शुरुवात गणेश वंदन से करते है, उससे भी पेहेले वैदिक कालो में यह प्रथम वंदन कि जगह शुक्राचार्य ऋषि कि भी देखि जाती है, परन्तु संघकी प्रार्थना कि शुरुवात मातृभूमि वंदन से होती है.
         संघ प्रार्थना का और एक वैशिष्ठ्य ऐसा है कि इसमें प्रार्थना करने वाला कभी खुदको अपराधी नहीं कहता है और अपने अपराधोंकी क्षमा याचना नहीं करता है. इसके विपरीत वह प्रभु से अपने वैधिक कार्य कि पूर्ति के स्वयं में शक्ति कि मांग करता है, विवेक कि मांग करता है.
३री पंक्ति का वैशिष्ट्य भी बहोत ज्यादा है, प्रभो शक्तिमन् हिन्दु राष्ट्राङ्ग भूता| इसमे हम सब हमारे राष्ट्रके अङ्ग्भुत घटक है ऐसा कहा है. जैसे शरीर के सारे हिस्से मिलजुल कर अपना अपना कार्य करते है वैसे ही हमें इस राष्ट्र के लिए मिलजुल कर कार्य करना चाहिए, पैर में काटा लगता है तो आँख को पानी निकालने के लिए अलग से बोलना जरूरी नहीं होता, मुख को अलग से भगवान का नाम लेने के लिए नहीं बोला जाता, हाथ को अलग से चुभा हुआ काटा निकलने के लिए कहा नहीं जाता, क्योंकि वह सब अपने शरीर के अङ्ग्भुत घटक है, वैसे ही हमें हमारा आचरण रखना चाहिए। अगली पंक्ति में 'वयम' का उल्लेख किया जाता है, यह शब्द हमें मिलकर काम करने का प्रोत्साहन देता है.  
बहुत सारी प्रार्थनाओमें भगवान को बहुत सारी चीजे करने के लिए कहा जाता है, लेकिन संघ कि प्रार्थना में भगवान से हम अपने लिए शील, ज्ञान, तीव्र ध्येयनिष्ठा मांगी है. 
अपनी परंपरा में कहा जाता है कि जब भी बुराई बढे तो भगवान स्वयं अवतार लेता है और उद्धार करता है, लेकिन हमें अब 'कलकी' अवतार के बारे में ज्यादा सोचना नहीं है, नाही उसकी अवतरित होने कि राह देखनी है, हमें हम सबको 'कलकी' बनकर अपना और सबका उद्धार करना है. यह कार्य सुलभ तो निश्चित नहीं है बल्कि यह पूरा कांटो से भरा हुआ 'कंटकाकीर्ण' है. इसका उदहारण देते हुए कहते है कि एक गुरु अपनी शिष्योंकी परीक्षा करने हेतु रस्ते के एक पूल, 'सांकव' पर काटे बिछा देते है और देखते है कोनसा शिष्य कैसे पार होता है, पहला रो पड़ता है और पार ही नहीं होता, दूसरा अपने पैरोंपर कपड़ा लपेटकर चल पड़ता है, लेकिन तीसरा एक पौधे से झाड़ू बनता है और साफ़ करते करते पार हो जाता है, इस तरह से केवल तीसरा शिष्य परीक्षा में उत्तीर्ण होता है. हमें भी इसी तरह से सारा रास्ता मिलकर साफ़ करना है ताकि आने वाले लोगोंको आसानी महसूस हो.
         अपनी धेयनिष्ठा भी बहोत प्रखर होनी चाहिए इतनी प्रखर जितनी स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी को अपेक्षित है, कहा जाता है एक आदमी स्वामीजी के पास यश पाने गया, स्वामीजी बोले कितनी इच्छा रखते हो यश पाने कि, वह बोला बहोत रखता हु, तो ठीक है कल सुबह नदी पर आ जाओ स्नान करने के समय. आदमी  पहोंच  गया तो  स्वामी  उसे लेकर पानी में चले गए, पानी पूरा नाक तक आया फिर जाकर रुके और अचानक से उस आदमी का सर पानी में डुबो दिया, जैसे पानी नाक, कान में जाने लगा उसको स्वामी ने ऊपर किया और पूछा ऊपर आने के बाद सबसे पेहेले किसकी याद आई? अगर तुझे तेरे ध्येय कि याद नहीं आई हो तो तू तेरा ध्येय कभी प्राप्त नहीं कर सकता। ऐसी प्रखर ध्येयनिष्ठां हमें हममे डालनी पड़ेगी।
         प्रार्थना में प्रभु से हैम शील कि मांग करते है, यह शील हममे ऐसा होना चाहिए कि हमारा दुश्मन भी कभी हमारे शील पर शंका ले सके. शिवाजी महाराज कि कथा कहती है कि जब सब लोग शिवाजी पर आरोप करते है कि शहिस्तेखान कि बेटी का शिवाजी ने अपहरण कर लिया है तो औरंगजेब ने उसके पत्नी से कहा शिवजी निकम्मा बड़ा होगा पर कभी किरी गैर मर्द के औरत को हाथ नहीं लगाएगा। ऐसा शील हमें हममे पैदा करना चाहिए।
इससे आगे हैम जब भी प्रार्थना दोहराएंगे तो केवल नहीं दोहराएंगे पर उसका भावार्थ दोहराएंगे।




दूसरा सत्र 
विषय - समरसता

'संस्कृति सबकी एक चिरंतन, खून रगोंमे हिन्दू है.'
          समता यह शब्द का जन्म शायद फ्रेंच राज्यक्रांति में है ऐसा बोला जाता है, शायद हैम इसको थोड़ा और पीछे ले जाकर आंबेडकर के गुरु भगवान बुध्द से भी इस सम्बद्ध देख सकते है. समता प्रस्थापित होने के लिए पूरी दुनिया में बहोत प्रयास हुए है. ब्रिटिशोंके साथ साथ हमारे देश में समाज सुधारकोंकी बड़ी पंक्ति हुई है. राजा राम मोहन रॉय का उदहारण हो सकता है, जिन्होंने अपने पूरी जिंदगी समाज के दोष मिटने हेतु  अर्पित समर्पित करदि. 
डॉक्टर जी ने भी यही उद्देश से संघ का संस्थापन किया और बड़ी निश्चयतापूर्ण बोला कि यह हिन्दुराष्ट्र है और हम सब एक मिलकर रहना चाहिए।
          वर्धा में संघ का शिबिर चल रहा था (सन १९३४) तो वर्धा के आश्रम में गांधीजी का प्रवास था, गांधीजी ने सोचा चलो देखते है डॉक्टरजी ऐसा कोनसा संघटन करते जो कहलाते है कि समाज में एकता आएगी। तो गांधीजी शिबिर में चले आये और वह बैठे हुए स्वयंसेवकोंसे पूछने लगे कि भाई तेरी जाती कौनसी है एक ने बोला मै हिन्दू हु, दूसरे ने भी बोला मै हिन्दू हुसब छोटे छोटे बच्चो से यही उत्तर पाकर गांधी जी बड़ी प्रसन्नता से डॉक्टरजी बोले कि हैम सब इतनी सालोंसे जो नहीं कर पा रहे थे वो आपने बहोत कि सुलभता से किया।
          समता प्रस्थापित करने हेतु मंदिर प्रवेश सब जाती को खुला होना चाहिए इस बात को लेकर सत्याग्रह भी हुए, इसमें एक ही आशा थी कि अगर हमें आज मंदिर में प्रवेश दिया जाता है तो कल मन में भी प्रवेश मिल सकेगा। 
सन १९७४ में संघ में पहेली बार सामाजिक समता और संघ इस विषय पर बौद्धिक देते हुए तृतीय सरसंघचालक देवरस जी ने कहा 'अगर दुनिया में अस्पृश्यता पाप नहीं है तो कोई पाप नहीं है'. इसके बाद समता और समरसता प्रस्थापित करने हेतु संघ में माननीय दत्तोपंतजी ठेंगडी ने १९८३ सामाजिक समरसता मंच कि स्थापना कि.

          समरसता के बिना समता होही नहीं सकती, समरसता यह एक आचरण का विषय है केवल विचार करते बैठने का तत्त्व नहीं है. इस समरसता के प्रेरणा स्थान अगर किसी को कहा जाता है तो वह है समरसताके पञ्चक महापुरुष - महात्मा ज्योतिराव फुले, छत्रपति शाहू महाराज, डॉ आंबेडकर, संत गाडगेबाबा और डॉ हेडगेवार।

          इस समरसता को हैम अपने आचरण में लाये और इस मातृभूमि को पुनः एकबार वैभव कि शिखर पर विराजमान देखे।  



सत्र ३ - अ. भा. प्रतिनिधि सभा वृत्त निवेदन
श्री वसंत देशपांडे 

इस प्रतिनिधि सभा में संघटनात्मक आयामोंपर विचार हुआ।  दैनंदिन शाखा को कैसे मजबूत किया जाए इसपर भी चर्चा हुई. शाखा मजबूती में यह कार्य हमें मदत करते है -
१. शाखा संच रहना चाहिए 
२. शाखा उपक्रमशील रहनी चाहिए 
३. वार्षिकोत्सव होना चाहिए 
४. जिल्हा केंद्र सक्षम होना चाहिए 
५. शाखा के कार्य का विस्तार होना चाहिए 
६. नियिजन बैठक रहनी चाहिए 
७. प्रवासी निरिक्षण होना जरूरी है 
८. प्रवासी कार्यकर्ता रहना चाहिए 
९. महाविद्यालयीन विद्यार्थिओंके लिए कार्यक्रम लेना चाहिए 

इसके आलावा संघ कि और बाकि शाखा में होने वाला कार्य कुछ उल्लेखनीय किये गए कार्य का वृत्त प्रसिद्धा हुआ.
अन्य क्षेत्र निवेदन में -
  1. प्रशिक्षण योजना 
  2. नए लोग जुड़ने के प्रयास 
  3. और अपने क्षेत्र का कोई प्रकाशन 
इसके साथ ही नेपाल में विवेकानंद सार्धशती के कार्यक्रम का वृत्त, राष्ट्र सेविका समिति विस्तारक योजना, सरहद को स्वरांजलि, भारतीय मजदूर संघ, स्वदेशी जागरण मंच इन शाखाओंकावृत्त प्रसिद्ध हुआ.